चाचा नेहरू के जन्म-मृत्यु से भगवान कृष्ण की नगरी का ये नाता
मथुरा न्यूज लाईव संवाददाता नितेश ठाकुर:—
आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री और बच्चों में चाचा के रूप में विख्यात जवाहरलाल नेहरू के जन्म और मृत्यु से मथुरा का गहरा नाता है। उनकी मां स्वरूपा रानी ने पुत्र प्राप्ति के लिए मथुरा में यमुना के किनारे कल्पवास कर अनुष्ठान किया था। जब जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु हुई तो परिजनों ने वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ यमुना के विश्राम घाट पर उनकी अस्थियों का विसर्जन कराया।
नेहरू परिवार के पुरोहित रहे रविंद्रनाथ चतुर्वेदी की बुजुर्ग मां महारानी देवी ने बताया कि 1888 में जवाहरलाल नेहरू की मां स्वरूपा रानी ने पुत्र प्राप्ति के लिए मथुरा में कल्पवास किया था। इस कठिन अनुष्ठान में वह 30 दिन यमुना के किनारे रहीं और सात्विक जीवन जीया।
1889 में जवाहरलाल नेहरू के जन्म के बाद पिता मोतीलाल नेहरू गदगद थे। उन्होंने यमुना किनारे तालाब गली में कश्मीरी धर्मशाला का निर्माण कराया, जो आज भी जर्जर हालत में मौजूद है। वर्ष 1964 में जवाहरलाल नेहरू का निधन हुआ तो उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित सहित परिजनों ने उनकी अस्थि विसर्जन के लिए मथुरा को चुना।
अभिलेखों में दर्ज है मोतीलाल नेहरू का मथुरा आगमन
उन्होंने बताया कि परिजन जवाहरलाल नेहरू की अस्थियों को लेकर मथुरा आए और यमुना के पवित्र विश्राम घाट पर नौका में सवार होकर यमुना की बीच धार में वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ अस्थियों का विसर्जन किया। ये कार्य उनके पुरोहित गोपीनाथ और उनके पुत्रों ने पूर्ण कराया।
नेहरू परिवार के पुरोहित परिवार के राजेंद्र नाथ चतुर्वेदी ने जवाहर लाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू और स्वरू पा रानी के मथुरा आगमन के प्रमाण दिखाए। अभिलेखों में मोतीलाल नेहरू और स्वरूपा रानी ने अपने मथुरा आगमन को प्रमाणित किया है।
संग्रहालय में रखा है अस्थि कलश
संग्रहालय के डिप्टी डायरेक्टर डा. एसपी सिंह ने बताया कि 1964 में जवाहरलाल नेहरू की अस्थियों को जिस कलश में मथुरा लाया गया था वो कलश आज भी संग्रहालय में धरोहर के रूप में रखा है। 14 नवंबर बाल दिवस पर इस अस्थि कलश को लोगों के दर्शनार्थ रखा जाएगा।