पढ़ें, ट्रांसजेंडर मुक्ति और प्रीति की कहानी, जिन्होंने दिव्यांग होने के बाद भी जारी रखा संघर्ष
पटना, सनाउल हक़ चंचल, स्टेट हेड
ट्रांसजेंडर यानी हमारे समाज का थर्ड जेंडर, जो वर्षों से उपेक्षा का शिकार रहा है, आज भी इनकी स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती है. इतिहास से वर्तमान तक ट्रांसजेंडर अपने अस्तित्व को लेकर संघर्षरत रहे, लेकिन बहुत अधिक सफलता इन्हें आज भी नहीं मिल पायी है, जिसके कारण ट्रांसजेंडर्स के लिए सम्मानित जीवन जीना सपना ही है वे समाज में महज़ उपहास के पात्र बनते हैं.
ऐसे वर्ग के लोगों के लिए जीवन तब और दुरुह हो जाता है , जब वे शारीरिक रूप से पूरी तरह सक्षम ना हों. कुछ ऐसी ही कहानी है पटना के दो दिव्यांग प्रीति मेहरा और मुक्ति किन्नर की. दिव्यांग होने के कारण इन्हें जीवन में काफी संघर्ष करना पड़ा है. मुक्ति किन्नर पटना सिटी की रहने वाली हैं, एक रेल दुर्घटना में इनका पैर कट गया, जिसके बाद इनकी जिंदगी में दर्द की जगह बहुत बड़ी हो गयी. लेकिन मुक्ति ने संघर्ष करना नहीं छोड़ा और संघर्ष करते हुए अपने जीवन को एक नयी दिशा दी. मुक्ति कृत्रिम पैरों के जरिये चलती हैं और संघर्ष कर रही हैं.
तसवीर भरत कौशिक की-
प्रीति मेहरा बचपन से ही दिव्यांग हैं, इसलिए इनके हिस्से में संघर्ष और दर्द की कहानियां कुछ ज्यादा ही हैं. हालांकि उन्होंने अपने संघर्ष को हमारे साथ साझा नहीं किया, लेकिन उनके अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले भरत कौशिक ने बताया कि प्रीति ने काफी संघर्ष किया है, उनके अंदर जीवन जीने की ललक है.
भरत कौशिक ट्रांसजेंडर्स को सम्मानित जीवन दिलाने के लिए लगातार प्रयासरत हैं. एक ओर तो ये उनके लिए जीवन की सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं मसलन जाड़े में कंबल वगैरह की व्यवस्था करवाते हैं, तो दूसरी ओर उनके जीवन में रंग भरने के लिए त्योहारों का भी आयोजन करवाते हैं. भरत इनकी काउंसिलिंग भी करते हैं.
भरत कौशिश ने वर्ष 2017 से ट्रांसजेंडर मॉडल मैगज़ीन का प्रकाशन शुरू करवाया, जिसमें रोल मॉडल किन्नरों के बारे में जानकारी होती है. इस मैगजीन के जरिये ट्रांसजेंडर्स के प्रति लोगों की सोच को बदलने का प्रयास किया जा रहा है. भरत कौशिक कहते हैं कि ट्रांसजेंडर्स की समस्या यह है कि वे अपनी जीविका के लिए एक निर्धारित पेशे को ही अपनाते हैं, उनके पास जीवन यापन का दूसरा कोई जरिया नहीं. हमारा प्रयास है कि उन्हें समाज में सम्मान मिले ताकि वे कोई दूसरा पेशा अपना कर भी अपना जीवन चला सकें.