विधायक भौर्याल मंदिर क्षेंत्र का दौरा कर विकास हेतु ढ़ाई लाख देनें की की घोषणा की
भद्रकाली के प्रति गहरी आस्था रखते है,
न्यूज लाईव विशेष संवाददाता रमाकांत पंत
कपकोट के विधायक श्री बलवंत सिंह भौर्याल जी की माँ भद्रकाली के प्रति गहरी आस्था है।साथ ही वे अपनें विधान सभा के तीर्थ स्थलों को विकसित किये जानें के प्रति प्रतिबद्व है।समय पाकर वे अक्सर अपनें क्षेंत्र के महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों का भ्रमण करते रहते है।पौराणिक महत्व के पुरातन तीर्थों स्थलों को कैसै विकसित किया जाएं इस विषय पर वे गम्भीरता पूर्वक अवलोकन कर रहे है।श्री भौर्याल का कहना है।उनके क्षेंत्र में एक से बढ़कर एक पुरातन सनातन महत्व के तीर्थ स्थलों की भरमार है।उन सभी को सूचीबद्व कर विकसित किये जानें की योजना है।विगत दिनों माँ भद्रकाली मंदिर समिति के बुलावे पर श्री भौर्याल माँ भद्रकाली दरबार पहुंचें काफी समय मंदिर परिसर में उन्होंने अपना समय दिया तथा भक्तजनों को भी सम्बोधित कर मंदिर परिसर का बारीकी से अवलोकन कर कहा कि देवी के इस दरबार से उनकी गहरी आस्था है।वे निरन्तर यहां आते रहते है।मंदिर के विकास हेतु वे हर संभव मदद करेगें इस अवसर पर उन्होनें मंदिर क्षेत्र के विकास हेतु ढ़ाई लाख रुपये प्रदान करनें की घोषणा की साथ ही गुफा को विकसित करनें हेतु बेहतर कार्य का आश्वासन दिया।अपनें सम्बोधन में उन्होनें आगे कहा माँ भद्रकाली का दरबार उत्तराखण्ड़ की अद्भुत आध्यात्मिक धरोहर है।इस धरोहर को सजाने व संवारने के लिए सरकारी स्तर पर हरसंभव प्रयास होगें श्री भौर्याल ने कहा माँ के चरणों में उनकी व क्षेत्रवासियों की अटूट व अगाध श्रद्वा है।आध्यात्मिक दृष्टि से इस स्थान का बेहद महत्व है।पर्यटन एंव तीर्थाटन के लिहाज से यह क्षेत्र काफी महत्व वाला क्षेत्रं है।उनकी भी प्रबल इच्छा है।कि उपरोक्त स्थान को विशेष तीर्थाटन के रूप में विकसित किया जाए।उन्होनें कहा कि वे हर संभव मदद करेगें तथा मार्ग निर्माण,यज्ञशाला,व मंदिर के सौर्दयीकरण में जहां जहां मंदिर के विकास के लिए जो भी सहयोग होगा।उसमें कोई कोर कसर नही छोड़ी जाऐगी।उल्लेख्रनीय है,कि
शिव जटाओं से प्रकट भद्रकाली का वास उत्तराखण्ड़ की इसी धरती पर है।
जनपद बागेश्वर की पावन भूमि पर कमस्यार घाटी में स्थित माता भद्रकाली का परम पावन दरवार सदियों से आस्था व भक्ति का अलौकिक संगम है।कहा जाता है,कि माता भद्रकाली के इस दरबार में मांगी गई मनौती कभी भी ब्यर्थ नही जाती है,जो भी श्रद्वा व भक्ति के साथ अपनी आराधना के श्रद्वा पुष्प माँ के चरणों में अर्पित करता है,वह परम कल्याण का भागी बनता है। माता श्री महाकाली के अनन्त स्वरुपों के क्रम में माता भद्रकाली का भी बड़ा ही विराट वर्णन मिलता है।जगत जननी माँ जगदम्बा की अद्भूत लीला का स्वरुप अनेक रुपों में माता श्री भद्रकाली की महिमां को दर्शाता है।पुराणों के अनुसार माता भद्रकाली का अवतरण दैत्यों के सहांर व भक्तों के कल्याण के लिए हुआ है।कहा जाता है,कि जब रक्तबीज नामक महादैत्य के आंतक से यह वंशुधरा त्राहिमाम हो उठी थी,तब उस राक्षस के विनाश हेतु माँ जगदम्बा ने भद्रकाली का रुप धारण किया। तथा महापराक्रमी अतुलित बलशाली दैत्य का संहार किया, रक्त बीज को यह वरदान प्राप्त था,कि उसका जिस किसी के साथ भी युद्व होगा युद्व के समय उसके शरीर से गिरने वाली रक्त की बूंदों से उसी के समान महाबलशाली दैत्य उत्पन्न होगें।जगदम्बा माता ने भद्रकाली का विराट रुप धारण करके उसके रक्त की बूदों का पान करके उसका सहांर किया। धौलीनाग के प्रसंग में भी माता भद्रकाली का बड़ा ही निराला वर्णन मिलता है।उल्लेखनीय है,कि धौलीनाग अर्थात् धवल नाग का मंदिर बागेश्वर जनपद अर्न्तगत विजयपुर नामक स्थान से कुछ ही दूरी पर पहाड़ की रमणीक छटाओं के मध्य भद्र काली पर्वत की परिधि का ही एक हिस्सा है। हिमालयी नागों में धवल नाग यानी धौली नाग का पूजन मनुष्य के जीवन को ऐश्वर्यता प्रदान करता है, महर्षि व्यास जी ने स्कंद पुराण के मानस खण्ड के 83 वें अध्याय में भद्रकाली के प्रिय इस नाग देवता नाग की महिमा का सुन्दर वर्णन करते हुए लिखा है। धवल नाग नागेश नागकन्या निषेवितम्। प्रसादा तस्य सम्पूज्य विभवं प्राप्नुयात्ररः।। (18/19 मानस खण्ड 83) इस तरह से भद्रकाली भक्त नाग पर्वत पर विराजमान नागों के अनेक कुलों का पुराणों में बड़े ही विस्तार के साथ वर्णन आता है, इस गोपनीय रहस्य को उद्घाटित करते हुए धवन नाग व अनेक नागों की महिमा के साथ माँ भद्र काली का वर्णन आया है। माँ भद्रकाली को ब्रह्मचारिणी के नाम से भी जाना जाता है। वैष्णों देवी मन्दिर के अलावा भारत भूमि में यही एक अद्भूत स्थान है, जहां माता भद्रकाली की महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती तीनो रुपों में पूजा होती है। इन स्वरुपों में पूजन होने के कारण इस स्थान का महत्व सनातन काल से पूज्यनीय रहा है,आदि जगत गुरु शंकरार्चाय ने इस स्थान के दर्शन कर स्वयं को धंन्य माना माँ भद्रकाली की एतिहासिक गुफा अद्भूत व अलौकिक स्वरुप है, जो मन्दिर के नीचे है, गुफा के नीचे कल कल धुन में नृत्य करते हुए नदी बहती है, इसी गुफा के ऊपर माँ भद्रकाली विराजमान है। ।देवी के इस दरबार में समय समय पर अनेकों धार्मिक अनुष्ठान सम्पन होते रहते है।मन्दिर में पूजा के लिये चंद राजाओं के समय से आचार्य एवं पूजारियों की व्यवस्था की गई है। मन्दिर के आचार्य पद का दायित्व खन्तोली के पन्त लोगों का है। और और पुजारी का पद ग्राम भद्रकाली के जोशी लोगों को दिया गया है। उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ मण्डल में बागेश्वर जनपद अंतर्गत बागेश्वर मुख्यालय से लगभग ३० किमी पूर्व में पहाड़ की सुरभ्य मनमोहित वादियों के बीच में स्थित इस देवी के दरवार की एक विशेषता यह है,कि प्रायः माँ जगदम्बा के मन्दिर एवं शक्ति स्थल पहाड़ की चोटी पर होते है ,लेकिन यह मन्दिर अन्य शक्ति स्थलों की अपेक्षा चारों ओर रमणीक शिखरों के मध्य बीच घाटी में स्थित है। और इन शिखरों पर नाग देवताओं के मन्दिर विराजमान हैं । जो यहां आने वाले आगन्तुकों को बरबस ही अपनी ओर खीचं लेते है।इस अवसर पर मंदिर कमेटी के पदाधिकारियों ने उनका माल्यापर्ण कर स्वागत किया।