नंदा सिद्वपीठ देवराड़ा थराली से 6 माह प्रवास के बाद 22 दिसंबर को नंदा राजराजेश्वरी मां भगवती की उत्सव डोली नंदाक पट्टी के नंदा सिद्वपीठ कुरूड़ के लिए विदा होगी।
रिपोर्ट हरेंद्र बिष्ट।
थराली। बधाण पट्टी के प्रसिद्ध नंदा सिद्वपीठ देवराड़ा थराली से 6 माह प्रवास के बाद 22 दिसंबर को नंदा राजराजेश्वरी मां भगवती की उत्सव डोली नंदाक पट्टी के नंदा सिद्वपीठ कुरूड़ के लिए विदा होगी। नंदा की विदाई की देवराड़ा में तैयारियां तेज हो गई हैं। नंदा विदाई के लिए पहली बार कल गुरुवार से पूरे 24 घंटे से अधिक समय तक देवराड़ा में नंदा विदाई मेला आयोजित हो रहा हैं।जिसे लेकर पूरे क्षेत्र में अलग ही तरह का उत्साह दिखाई पड़ रहा हैं।
दरअसल सदियों से बधाण की नंदा राजराजेश्वरी मां भगवती की उत्सव डोली की ऐतिहासिक परंपरा चली आ रही हैं। इसके तहत भादों मास की श्री कृष्ण जन्माष्टमी को सिद्वपीठ कुरूड़ जिसे नंदा का मायका माना जाता हैं। वहा के ऐतिहासिक मंदिर के गर्भगृह से बधाण एवं दशोली की नंदा के डोलें जात (नंदा की बुग्यालों में विशेष पूजा) के लिए विधि-विधान से बहार निकाली जाती हैं। यहां पर दो दिनों तक दोनों उत्सव डोले की पूजा अर्चना के बाद डोले यात्रा पर निकल जाते हैं। बधाणी की डोली वेदनी एवं दशोली की डोली बालपाटा के बुग्यालों सप्तमी की पूजा के बाद विभिन्न पड़ावों से होते हुए वापस आ जाते हैं। दशोली की नंदा डोली वापस लौट कर कुरूड़ में विराजमान हो जाती हैं। जबकि बधाण की राजराजेश्वरी की डोली नंदा का ननिहाल मानें जाने वाले देवराड़ा में 6 माह के लिए विराजमान हो जाती हैं। जहां पर उसकी 6 महीनों तक विधिवत पूजा अर्चना होती रहती हैं। और पौष मास में डोली अगले 6 माह के प्रवास के लिए देवराड़ा से कुरूड़ के लिए रवाना हो जाती हैं।
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पिछले वर्षों तक देवराड़ा से विशेष किसी आयोजन के ही नंदा की डोली विदा होती थी। किंतु इस बार बधाण के चौदह सयानों ने नंदादेवी राजराजेश्वरी परगन्ना बधाण नाम से समिति का गठन कर अपनी कुल देवी की विदाई के पर्व पर विदाई मेले का आयोजन रखा है। इसके तहत कल से यहां पर एक मेले एवं रात्रि जागरण के साथ ही भंडारे का आयोजन किया जायेगा।
